Friday 17 February 2017

BJP की बढ़ी मुश्किलें, BJP से बगावत करने वाली हिन्दू युवा वाहिनी के लिए प्रचार करेंगे उद्धव ठाकरे, पूर्वांचल की 18 सीटों पर हार तय

लखनऊ पूर्वांचल में सबसे ज्यादा बगावत का सामना कर रही भारतीय जनता पार्टी के लिए और मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। योगी आदित्यनाथ के संगठन हिन्दू युवा वाहिनी से बगावत करके विधानसभा चुनाव में ताल ठोंक रहे प्रत्याशी सीधे सीधे भाजपा का वोट काट रहे हैं।

हिन्दू युवा वाहिनी से बगावत करने वाले प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह बीजेपी का खेल बिगाड़ने के लिए अब अपने प्रत्याशियों के समर्थन में शिव सेना के फायर ब्रांड नेताओं को बुला रहे हैं। सुनील सिंह की मानें तो शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे प्रचार में आ सकते हैं। फिलहाल शिवसेना नेता व केंद्रीय भारी उद्योग राज्य मंत्री अनंत गीते और सामना के संपादक सभा सदस्य संजय राउत का कार्यक्रम तय हो गया है। 23 फरवरी को दोनों नेता योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र में प्रेस कांफ्रेंस करने के बाद कुशीनगर व महराजगंज समेत अन्य जिलों में प्रत्याशियों के समर्थन में सभा करेंगे।

योगी से बगावत करने वाले हिन्दू युवा वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह ने बताया कि बीएमसी चुनाव की वजह से शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे व आदित्य ठाकरे थोड़े व्यस्त हैं लेकिन उनका भी कार्यक्रम जल्द ही मिल जाएगा। दोनों नेताओं ने आने के लिए हामी भर दी है। अभी तारीख और जगह का चयन किया जाना शेष है। सुनील सिंह ने बताया कि वह लोग पूरे दम खम से लड़ रहे। लोगों का जनसमर्थन भी प्राप्त हो रहा।

हिन्दू युवा वाहिनी के बागी गुट ने 13 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि पांच सीटों पर बीजेपी से बगावत कर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों को समर्थन दिया है। बागी गुट का गठबंधन शिवसेना से है और उन्हें सिंबल भी शिवसेना का ही मिला है।

हिन्दू युवा वाहिनी के बागी गुट के उम्मीदवार

गोंडा सदर-महेश तिवारी
बस्ती सदर -सुधा ओझा
झांसी सदर-अरविन्द वर्मा
चैरीचैरा -वीरेन्द्र तिवारी
फरेन्दा -जितेन्द्र शर्मा
पनियरा -श्यामसुन्दर दास
खड्डा-अजय गोविंद राव शिशु
पडरौना-अजय कुमार पांडेय उर्फ पप्पू पांडेय
हाटा-वृजमोहन वर्मा उर्फ कवि जी
रामपुर कारखाना-आनन्द शाही
मधुबन -देवेन्द्र सिंह परिहार
मउ सदर-अजीत सिंह चंदेल
मुबारकपुर-हरिवंश मिश्रा
गोरखपुर ग्रामीण-रतनदत्त पांडेय नामांकन खारिज

हिन्दू युवा वाहिनी के समर्थित उम्मीदवार समर्थन
सहजनवा-अश्विनी तिवारी
कैम्पियरगंज-गोरख सिंह
पिपराइच-अनीता जायसवाल
नौतनवा-सदामोहन उपाध्याय
तमकुही-श्रीकांत मिश्र

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चाचा ने कहा, नेता जी की बिगड़ी साइकिल फिट, यूपी में बबुआ अखिलेश हिट

कानपुर. समाजवादी पार्टी, परिवार और नेता जी की बिगड़ी चल रही साइकिल को पूरी तरह से को ठीक कर दिया गया है और वह फिट है। जुमले वाले व बहन जी को हराकर बबुआ अखिलेश यूपी में हिट होंने जा रहे हैं और 11 मार्च के बाद कुर्सी दोबारा संभालने जा रहे हैं। यह बात शुक्रवार की शाम कानपुर की बिल्हौर विधानसभा के चौबेपुर में एक पब्लिक मीटिंग के दौरान राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव ने कही। विरोधी दलों पर हमला करते हुए प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने कहा कि जिनकी नीतियां और नीयत अच्छी है, वही यूपी का विकास कर सकता है। अखिलेश यादव ने पांच साल के अंदर जो वादे चुनाव से पहले किए उसे बिना भेदभाव किए हुए पूरे किए। जबकि देश के अन्य नेता जुमलों में समय बर्बाद कर दिए। मायावती ने पत्थर लगवाए तो सीएम ने उनको तंदुरस्त कर पर्यटक स्थल बनाया।
भाजपा टीवी पर दिखने वाली फिल्म 
प्रोफेसर ने कहा कि भाजपा तो टीवी पर दिखने वाली फिल्म की तरह एक छलावा है। पीएम मोदी द्वारा दिखाए जा रहे झूठे सपनों से देश की जनता वाकिफ हो चुकी है। वहीं बसपा का विकास को लेकर कोई एजेंडा नहीं होता। सत्ता में आती है मूर्तियां और पार्क बनवाकर जनता से दूर हो जाती है। गठबंधन प्रत्याशी शिवकुमार बेरिया के समर्थन में प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने कहा कि प्रदेश की जनता का हित सिर्फ सपा में ही सुरक्षित है। यूपी में फिर से अखिलेश यादव की सरकार बनना तय है। यादव ने कहा कि कुछ परिस्थितियों पर पार्टी में समस्या पैदा हुई, लेकिन जल्द ही समस्या का निराकरण कर लिया गया। उन्होंने जनता से सपा को वोट देने की अपील की। 
वह छोटे भाई है अब अखिलेश के साथ हैं
प्रोफेसर रामगोपाल ने कहा कि शिवपाल यादव हमारे छोटे भाई हैं वह भतीजे और नेता जी के खिलाफ कभी नहीं जा सकते है। जिन्होंने घर में कलह कराई थी वह अब दल से बाहर किए जा चुके हैं। रामगोपाल ने कहा कि अखिलेश के जज्बे को हम सलाम करते हैं। पहले सिंबल के लिए जूझे और जीते। आज उनका काम दिख और बोल रहा है और वह यूपी का दंगल जीत कर नेता जी को तोहफा देंगे। यादव ने कहा कि सीएम अखिलेश ने एक्सप्रेस वे, मेट्रो सहित अनेक जनहितकारी योजनाओं को धरातल पर उतारा और पब्लिक भी सपा के चुनाव चिन्ह साइकिल पर बटन दबा रही है।

दिल्ली हमलो मे पकडे गये लोगो के बारे मे यह सााबित नही हुआ कि वारदात के लिए वही जिम्मेवार हैं

तकरीबन बारह साल पहले दिल्ली में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के आरोपियों का अदालत से बरी होना यही साबित करता है कि पुलिस की कार्यप्रणाली के चलते कितने स्तरों पर लोगों को निराशा और यातना भुगतनी पड़ती है।

तकरीबन बारह साल पहले दिल्ली में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के आरोपियों का अदालत से बरी होना यही साबित करता है कि पुलिस की कार्यप्रणाली के चलते कितने स्तरों पर लोगों को निराशा और यातना भुगतनी पड़ती है। अव्वल तो देश की राजधानी होने के नाते सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज से सबसे संवेदनशील होने के बावजूद दिल्ली में बम धमाकों को अंजाम देने वाले कामयाब हुए, फिर इस मामले में पकड़े गए लोगों के बारे में यह साबित नहीं किया जा सका कि वारदात के लिए वही जिम्मेवार थे। क्या यह पुलिस के काम करने के तौर-तरीके पर एक और सवालिया निशान नहीं है? आतंकी घटना के बाद अपनी सक्रियता का सबूत देने के लिए आनन-फानन में कुछ लोगों को गिरफ्तार करके वह तात्कालिक तौर पर जन-सामान्य के बीच पैदा हुए गुस्से को तो शांत करने की कवायद करती है, लेकिन कई बार अपनी कार्रवाई को वह विश्वसनीय साबित नहीं कर पाती है। यह अपने आप में हैरानी की बात है कि जिन लोगों को दिल्ली में हुए बम धमाकों का अपराधी बता कर गिरफ्तार किया गया, उन पर लगाए गए आरोपों को लगभग बारह साल तक चली अदालती कार्यवाही के बावजूद साबित नहीं किया जा सका।

गौरतलब है कि उनतीस अक्तूबर 2005 को दिवाली के एक दिन पहले सरोजिनी नगर, पहाड़गंज और कालकाजी के भीड़ वाले इलाकों में हुए कई धमाकों में सड़सठ लोग मारे गए थे और सवा दो सौ से ज्यादा लोग घायल हुए थे। उस मामले में मुख्य आरोपी मोहम्मद रफीक शाह और मोहम्मद हुसैन फाजिली सहित तारिक अहमद डार को गिरफ्तार तो किया गया, लेकिन उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं पेश किया जा सका। नतीजतन, पटियाला हाउस अदालत ने गुरुवार को इस मामले में फैसला देते हुए किसी भी आरोपी को विस्फोट का दोषी नहीं माना और उन्हें बरी करने के आदेश दिए। जिसे धमाकों का मास्टरमाइंड बताया गया, उस तारिक अहमद डार को सिर्फ एक आतंकवादी समूह से ताल्लुक रखने का दोषी पाया गया और उसे दस साल की सजा सुनाई गई। लेकिन चूंकि वह पहले ही बारह साल जेल में गुजार चुका है, इसलिए वह भी रिहा हो गया। सवाल है कि दिल्ली पुलिस ने इन सभी लोगों को किस बुनियाद पर गिरफ्तार किया था? सारी जांच और पूछताछ से उसने क्या हासिल क्या?

पिछले कुछ सालों के दौरान कई ऐसे मामले सामने आए जिनमें उन युवाओं को अदालतों में आखिर निर्दोष पाया गया, जिन्हें पुलिस ने आतंकी गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया था। अगर कोई युवा इतने संगीन आरोपों में दस-बारह साल या इससे ज्यादा तक जेल में रह कर बाहर आता है तो क्या उसका जीवन पहले की तरह ही सहज रह पाता है? रिहा होने के बाद, बिना किसी अपराध के, इतने बरस कैद रहने से पैदा हुई कुंठा व निराशा अदालत में इंसाफ मिलने से कम हो सकती है? उम्र का एक लंबा दौर जेल में ही गुजर जाने की भरपाई क्या इतनी आसान होती है? इसके अलावा, एक गंभीर आरोप में सालों जेल में बंद रहने से बनी छवि के साथ उसकी सामाजिक जिंदगी वापस पटरी पर आना बहुत मुश्किल होता है। एक सवाल यह भी उठता है कि अगर रिहा हुए ये लोग निर्दोष थे, तो असली दोषी कौन थे और उन तक कानून के हाथ क्यों नहीं पहुंचे!

हैदराबाद पुलिस ने शुक्रवार को चारमीनार से बरकूस तक '5k run' का आयोजन किया। हिस्‍सा लेने वालों ने रैली में लंबा तिरंगा लहराया। (PTI Photo)

बाँसी विधान सीट-इस बार राजा के महल मे सेंध लगाने की तैयारी मे सपा

जिले के बाँसी विधानसभा सीट पर इस बार बाँसी राजघराने के सदस्य राजा जय प्रताप सिंह पर हर विरोधी की निगाहे टिकी हैं। सपा हो या बसपा, सबके इरादे राजकुमार के सियायी महल पर लगी हुयी हैं। यहा से सपा प्रत्याशी लाल जी यादव भाजपा को कडी टक्कर दे रहें हैं। राजमहल पर खतरा है सुरक्षा का उपाय कठिन हैं।

यह है आंकड़ा

बांसी विधान सभा में २० फीसदी मुस्लिम, १६ प्रतिशत ब्रहमन, भूमिहार, १४  फीसदी यादव, १२ फीसदी निषाद, ८ फीसदी लोधी राजपूत के अलावा ३० फीसदी शेष राजपूत, वैष्य, कायस्थ और अन्य पिछड़ी जातियां हैं। इसमें ब्रहमन,निषाद, लोधी व अन्य सवर्ण व अति पिछड़ी जातियें के गठजोड़ से जय प्रताप चुनाव जीत जाया करते थे। हालांकि वह किसी पिछउ़े के दुख दर्द में कम ही साथ खड़े होते थे। इसलिए उनके बीच उनका जनाधार घटने लगा।

क्या है मौजूदा हालत

लालजी यादव के कारण भाजपा विधायक जयप्रताप से पिछड़ी जातियों का मोह भंग होने लगा था। इस चुनाव में बसपा ने एमएलसी लालचंद निषाद को उम्मीदवार बना कर उनके पिछड़ वर्ग में छेद लगाने की चाल चली है। इसके अलावा ३२ हजार भाजपा के परपरागत लोधी वोटर के लिए लोधी समाज ने भी अपना उम्मीउदवार उतार दिया है। जिले का पांच सीटों में एक भी ब्रहमन उमीदवार न देने के कारण विप्र समाज भी भाजपा से नाराज है, ऐसे में भाजपा विधायक जयप्रताप का समीकरण कुछ गड़बड़ दिखता है।

आतंकवादी कह कर पकड़ा था लेकिन रफ़ीक और फ़ाज़ली निकले बेगुनाह

दिल्ली: दिल्ली में हुए सीरियल बम ब्लास्ट के आरोप में गिरफ़्तार किये गए मोहम्मद रफ़ीक, अहमद फ़ाज़ली और तारिक़ अहमद डार को अदालत ने बरी कर दिया. अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा कि रफ़ीक और फ़ाज़ली के ख़िलाफ़ कोई भी सुबूत दिल्ली पुलिस पेश नहीं कर सकी. कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने आरोप साबित करने के लिए परिस्थिजन्य सुबूत भी नहीं पेश किये.

अदालत ने माना कि रफ़ीक और फ़ाज़ली पूरी तरह से बेगुनाह हैं. हालाँकि कोर्ट ने तारिक़ अहमद “डार” को एक दूसरे मामले में दोषी पाया लेकिन दिल्ली में 2005 की दिवाली से पहले हुए इन धमाकों में उसका हाथ नहीं पाया गया.

कोर्ट ने माना कि उसका सम्बन्ध प्रतिबंधित आतंकी संघठन लश्कर ए तैयबा से रहा है लेकिन इसके लिए वह पहले ही दस साल से अधिक की सज़ा काट चुका है. इसलिए अदालत ने उसे भी रिहा करने का आदेश जारी किया.

देश-विदेश घूमकर राजीनीति करने वाले PM मोदी हार से घबराकर थाने-चौकी की राजीनीति पर उतर आये हैं – अखिलेश यादव

बाराबंकी, उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में चरण दर चरण गर्मी के साथ आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी बढ़ता जा रहा है। देश के प्रधानमंत्री जहाँ मुख्यमंत्री अखिलेश,डिंपल के साथ उनके सभी नेताओ को गुंडा बता रहे है तो वहीँ उनके विकास के काम को घोटालों के कारनामे बताते हैं। जब से अखिलेश और राहुल का गठबंधन हुआ है तब से प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह लगातार गठबंधन पर वार कर रहे हैं और इस गठबंधन को दो कुनबों का गठबंधन बता रहे हैं।

वहीँ गठबंधन की बात पर BJP स्वयम घिरती नजर आ रही है क्योंकि 10 से अधिक प्रदेशों में BJP गठबंधन की सरकार चला रही है और UP में गठबंधन के साथ ही चुनाव लड़ रहे हैं।

आज बाराबंकी के राम नगर की रैली में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री मोदी को करार जवाब दिया और कहा कि पहले तो मोदी जी ये समझ लें कि ये गठबंधन 2 युवाओं का हैं। इसके साथ अखिलेश ने कहा की नरेंद्र मोदी जी देश के प्रधानमंत्री है और देश विदेश घूमकर राजीनीति करते है पर उत्तर प्रदेश के चुनावों में वो हम युवाओं से घबरा गए हैं इसीलिए वो विकास के मुद्दे छोड़कर अब थानों और चौकी की राजनीती पर उतर आये हैं और पूरे देश के सामने बिहार चुनाव की तर्ज पर सिर्फ झूठ के बड़े -बड़े पुल बनाये जा रहे हैं। मैं याद दिल दूँ की बिहार के विधानसभ चुनावों में मोदी जी ने मंच से कहा था की बिहार को विशेष पैकज के रूप में 1 करोड़ ४० रूपये बिहार जी जनता को देंगे kintu आज तक कुछ नही दिया तथा गरीब देशवासिओं के खातों में 15 लाख रूपये भी आज तक नही आये।

'मैं धारक को मूर्ख बनाने का वचन देता हूं'

नोटबंदी हुए 100 से कुछ ज़्यादा दिन हो गए हैं. हालांकि प्रधानमंत्री ने 50 दिन मांगे थे. लेकिन हालात हैं कि सामान्य होने का नाम नहीं ले रहे हैं. न लोगों के लिए, न रिजर्व बैंक और सरकार के लिए. नोटबंदी के फैसले और उसे लागू करने के तरीके पर लगातार सवाल उठाए गए. नोटबंदी का एजेंडा जिस तरह कालेधन से ई-पेमेंट पर आया, उससे लोगों को ये भी लगा कि उन्हें मूर्ख बनाने की कोशिश हुई. अब एक मीडिया रिपोर्ट आई है जिसके मुताबिक इस बात की संभावना है कि रिजर्व बैंक ने रघुराम राजन के गवर्नर रहते उर्जित पटेल के दस्तखत वाले नोट छाप दिए हों.

हर नोट एक कागज़ का टुकड़ा बस होता है. इसकी कीमत उस गारंटी से होती है जो केंद्र सरकार देती है. ‘ मैं धारक को…’ वाली लाइन के नीचे रिजर्व बैंक गवर्नर का दस्तखत इस बात की तस्दीक करता है. एक गवर्नर के कार्यकाल में छपने वाले नोटों पर उसके दस्तखत होते हैं.

गवर्नर पद के लिए उर्जित का नाम 21 अगस्त को सामने आया था. उन्होंने गवर्नर पद का चार्ज 4 सितंबर को लिया. लेकिन ‘हिंदुस्तान टाइम्स’  के हवाले से खबर है कि रिज़र्व बैंक के दो प्रेस में 2000 के नोट छापने के ‘प्रारंभिक कदम’ 22 अगस्त 2016 को ही उठाए लिए गए थे. इस तरह कम से कम कुछ नोटों पर रघुराम राजन के दस्तखत होने चाहिए थे.

एक बात ये भी है कि रिजर्व बैंक को 2000 के नए नोटों को छापने की अनुमति केंद्र सरकार ने 7 जून 2016 को ही दे दी थी. इसके बाद नई सीरीज़ छापने की तैयारी शुरू कर दी थी. आमतौर पर नए नोट छापने का आदेश मिलते ही प्रेस में छपाई शुरू हो जाती है. ये सब खुद रिजर्व बैंक ने दिसंबर में एक संसद समीति को बताया था.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में एक बात और सामने आई है. 500 के नए नोटों की छपाई 23 नवंबर को ही शुरू हुई. साफ है कि नोटबंदी की घोषणा के वक्त सरकार (और रिज़र्व बैंक का भी) ध्यान केवल 2000 के नोट छापने पर था. इस से बाज़ार में चिल्लर की जो कमी हुई, उस पर पर्याप्त लिखा जा चुका है.

स बात से दो महत्वपू्र्ण सवाल खड़े होते हैंः

पहला ये कि क्या नोटों पर पटेल के दस्तखत होने से किसी नियम की अनदेखी हुई?

दूसरा ये कि रघुराम राजन का जाना तय होने के बाद बड़े लंबे समय तक इस बात पर संशय था कि उनकी जगह कौन लेगा. राजन के रिटायर होने की तारीख के बहुत नज़दीक आने पर ही उर्जित का नाम सामने आया. यदि मीडिया रिपोर्ट में जताई संभावना वाकई में सच है तो क्या सरकार ने गवर्नर पद की अपनी पसंद जानबूझ कर लोगों से छुपाई? ऐसा क्यों हुआ?

रिज़र्व बैंक एक महत्वपूर्ण संस्था है जिसके काम करने के तरीके पर पिछले दिनों कई प्रश्न उठे हैं. खासकर इस बात पर कि कहीं बैंक सरकार के प्रभाव में तो काम नहीं कर रहा, जिसका डर जताया जा रहा है

17 फरवरी का इतिहास : : 17 फरवरी 1968 को महान मुगल बादशाह औरंगजेब आलमगीर ने "जिंजी के किले" पर फतह हासिल की थी!

भारत एवं विश्व इतिहास में 17 फरवरी की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार है:
1370- रुडाउ की लड़ाई में जर्मनी ने लिथुआनिया को हराया ।
1670- छत्रपति शिवाजी ने सिंह गढ़ का किला जीता।
1698- औरंगजेब ने आठ साल की घेराबंदी के बाद जिंजी के किले पर कब्जा किया।
1878- सैन फ्रांसिस्को शहर में पहली बार टेलीफोन एक्सचेंज खोला गया।
1882- सिडनी क्रिकेट ग्राउंड पर पहला टेस्ट मैच खेला गया।
1883- महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता वासुदेव बलवंत फडके का अदन की जेल में निधन हो गया।
1915- गांधी जी पहली बार कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) स्थित शांति निकेतन गये।
1933-अमेरिका की साप्ताहिक पत्रिका ‘न्यूजवीक’ प्रकाशित हुयी।
1944-द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एनीवेटोक का युद्ध शुरू हुआ जिसमें अमेरिकी सैनिकाें ने जीत हासिल की।
1947- सोवियत संघ में ‘वायस आॅफ अमेरिका’ का प्रसारण शुरू किया गया।
1962- जर्मनी के हैम्बर्ग में तूफान से 265 लोगों की मौत।
1964- अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने नागरिक अधिकारों पर बने कानून को स्वीकार किया।
1976- मकाऊ ने संविधान को अंगीकार किया।
1983- नीदरलैंड ने संविधान को अंगीकार किया।
1994- गुजरात के मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल का 65 वर्ष की आयु में निधन ।
2007- अमेरिका की तत्कालीन विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने इराक से सैनिकों को वापस बुलाये जाने की घोषणा की।
2008- कोसोवो ने सर्बिया से स्वतंत्र होने की घोषणा की।
2014- सऊदी अरब की सोमाया जिबार्ती देश की पहली महिला मुख्य संपादक बनीं।
उन्हें ‘सऊदी गजट’अखबार का मुख्य संपादक बनाया गया।
2016- तुर्की की राजधानी अंकारा में कुर्द आतंकवादियों के कार बम धमाके में 28 लोगों की मौत राहुल, यामिनी वार्ता

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17 फ़रवरी सन 1809 ईसवी को फ़्रांस और स्पेन के बीच होने वाला सारगूसा युद्ध फ़्रांस की विजय और पूर्वी स्पेन के सारागूसा नगर पर उसके अधिकार के साथ समाप्त हो गया।

यह युद्ध 15 नवम्बर सन 1808 ईसवी को नेपोलियन के आक्रमण से आरंभ हुआ था। नेपोलियन की सेना को स्पेन की जनता और वहां की सेना के कड़े प्रतिरोध का सामना हुआ। इस युद्ध में दोनों पक्षों ने बड़ी निर्दयता और निर्ममता का प्रदर्शन किया। इसी लिए इस युद्ध में मरने वालों की संख्या बहुत अधिक हो गयी। हालॉकि स्पेन पर फ़्रांस का अधिकार हो गया किंतु सन 1812 ईसवी में जब नेपोलियन को रुस के मुकाबले में पीछे हटना पड़ा और योरोप की संयुक्त सरकारों से भी उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा तो स्पेन भी स्वतंत्र हो गया।

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17 फ़रवरी सन 1827 ईसवी को जॉन हेनरी पेस्टलोज़ी नामक स्वीज़रलैंड के बुद्धिजीवी का निधन हुआ। उन्हें गणित भौतिक विज्ञान आदि जैसे विषयों की व्यापक जानकारी थी साथ ही वे कई भाषाओं से भी भलि भॉति परिचित थे। वे बहुत अच्छे शिक्षक थे एक ही समय में वे बच्चों को कई विषय पढ़ाते थे। वे कोई भी विषय आरंभ करने से पहले शिक्षार्थियों को उसके लाभ के बारे में बताते थे।

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17 फ़रवरी सन 1989 ईसवी को मोरक्को में पश्चिमी अरब संघ की स्थापना के समझौते पर सहमति हुई। इस अवसर पर उत्तरी अफ़्रीक़ा के देशों के राष्ट्रध्यक्ष उपस्थित थे।

इस समझौते में शामिल देशों में लीबिया, अलजीरिया, टयूनीशिया, मोरीतानिया और मोरक्को थे। इस संघ की स्थापना का उददेश्य सदस्य देशों की पश्चिमी देशों पर निर्भरता को कम करने के लिए आपसी सहकारिता को विस्तृत करना था। किंतु अलजीरिया और मोरक्को जैसे कुछ सदस्य देशों के बीच मरुस्थल के मामले पर मतभेद तथा इसी प्रकार कुछ सीमा संबंधी एवं राजनैतिक विवादों के कारण इस संघ की स्थापना के लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सका। यही कारण है कि इस समय इस संघ की कोई विशेष सक्रियता नहीं है।

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29 बहमन सन 1356 हिजरी शम्सी को ईरान के पश्चिमोत्तरी नगर तबरेज़ की जनता ने 19 दैय 1356 हिजरी शम्सी को क़ुम नगर में शहीद होने वालों की याद में तबरेज़ की बड़ी मस्जिदों में जमावड़ा किया। शाह के सुरक्षाकर्मियों के कड़े व्यवहार के चलते यह प्रदर्शन ईरान में जनान्दोलन में परिवर्तित हो गया। शाह के पिटठू अधिकारी यह देख कर दंग रह गये और उन्होंने अपनी अक्षमता को छिपाने के लिए इस आंदोलन को विदेशी शक्तियों के हस्तक्षेप का परिणाम कहना आरंभ कर दिया। तबरेज़ की जनता का प्रदर्शन वास्तव में शाह के अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध जनता के कड़े रुख़ का आरंभ था जो बाद में ईरान की मुसलमान जनता के विभिन्न आंदोलनों का प्रेरणा स्रोत सिद्ध हुआ।


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